कांग्रेस के वरिष्ठ और राहुल गांधी के बेहद करीबी नेता रहे दिवंगत राजीव सातव की पत्नी प्रज्ञा सातव ने कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है। प्रज्ञा सातव ने न केवल कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया, बल्कि कांग्रेस कोटे से मिली महाराष्ट्र विधान परिषद की सदस्यता से भी त्यागपत्र दे दिया। उनके इस कदम को कांग्रेस के लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका माना जा रहा है, वहीं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए इसे एक बड़ी रणनीतिक सफलता के रूप में देखा जा रहा है।
प्रज्ञा सातव के कांग्रेस छोड़ने के पीछे की टाइमिंग और राजनीतिक गणित ने महाराष्ट्र की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। गुरुवार को उन्होंने औपचारिक रूप से भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण और वरिष्ठ मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले की मौजूदगी में प्रज्ञा सातव को पार्टी में शामिल कराया गया। इस घटनाक्रम ने न केवल कांग्रेस की ताकत को कमजोर किया है, बल्कि विधान परिषद और विधानसभा दोनों में विपक्ष की रणनीति को भी प्रभावित किया है।
राजीव सातव की विरासत और कांग्रेस से जुड़ाव
राजीव सातव कांग्रेस के उन नेताओं में गिने जाते थे, जिन पर पार्टी को भविष्य की बड़ी उम्मीदें थीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस महाराष्ट्र में बुरी तरह हार गई थी, तब भी उसने दो सीटें जीती थीं, जिनमें से एक हिंगोली सीट राजीव सातव की थी। वह राहुल गांधी के करीबी माने जाते थे और पार्टी संगठन में उनकी मजबूत पकड़ थी। हालांकि, 2021 में मात्र 46 वर्ष की आयु में उनके असमय निधन ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया था।
राजीव सातव के निधन के बाद कांग्रेस ने उनकी पत्नी प्रज्ञा सातव को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाया और उन्हें राज्य विधान परिषद की सदस्यता दिलवाई। माना जा रहा था कि पार्टी उन्हें धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में एक मजबूत चेहरा बनाएगी। लेकिन अब प्रज्ञा सातव का कांग्रेस छोड़ना इस पूरी रणनीति पर सवाल खड़े करता है।
एक तीर से कई निशाने: फडणवीस की रणनीति
प्रज्ञा सातव के इस्तीफे और भाजपा में शामिल होने से मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक साथ कई राजनीतिक लक्ष्य साध लिए हैं। सबसे पहले तो कांग्रेस की विधान परिषद में एक सीट कम हो गई है। इससे कांग्रेस का वहां नेता प्रतिपक्ष पद पर दावा भी खत्म हो गया है। विधान परिषद में पहले कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) दोनों के छह-छह सदस्य थे, लेकिन अब कांग्रेस की संख्या घट गई है।
कांग्रेस की योजना थी कि भविष्य में जब दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति होगी, तब विधान परिषद में उसका सदस्य सतेज पाटिल नेता प्रतिपक्ष बनेगा, जबकि विधानसभा में संख्या अधिक होने के कारण शिवसेना (यूबीटी) को यह पद मिलेगा। लेकिन प्रज्ञा सातव के कांग्रेस छोड़ते ही यह पूरा समीकरण बिगड़ गया।
उद्धव ठाकरे को मिला मौका, आदित्य पर संकट
अब विधान परिषद में शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सीधे तौर पर नेता प्रतिपक्ष पद के सबसे बड़े दावेदार बन गए हैं, क्योंकि वे स्वयं विधान परिषद के सदस्य हैं। वहीं विधानसभा में शिवसेना (यूबीटी) आदित्य ठाकरे को नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहती थी। लेकिन यदि दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष एक ही परिवार से होते हैं, तो इस पर “परिवारवाद” को लेकर तीखी आलोचना तय मानी जा रही है।
ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद किसी और को दिया जा सकता है। इस तरह आदित्य ठाकरे को नेता प्रतिपक्ष बनने से रोकने का मुख्यमंत्री फडणवीस का लक्ष्य भी पूरा होता नजर आ रहा है।
कांग्रेस के लिए दोहरी मुश्किल
प्रज्ञा सातव के भाजपा में जाने से कांग्रेस को दोहरी चोट लगी है। एक ओर पार्टी को एक अनुभवी राजनीतिक परिवार का साथ खोना पड़ा, वहीं दूसरी ओर दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष के पद से भी वह लगभग बाहर हो गई है। इस घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा न सिर्फ सत्तापक्ष के रूप में मजबूत है, बल्कि विपक्ष की अंदरूनी रणनीतियों को तोड़ने में भी सफल हो रही है।
आने वाले समय में प्रज्ञा सातव की भाजपा में भूमिका क्या होगी और कांग्रेस इस नुकसान की भरपाई कैसे करेगी, इस पर सबकी नजरें टिकी रहेंगी।