अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का H-1B वीज़ा को लेकर रुख़ अब पहले से काफ़ी नरम पड़ गया है। जो ट्रंप पहले इस वीज़ा का विरोध करते थे, अब उन्होंने इसे अमेरिका के लिए ज़रूरी बताया है। उन्होंने दोगुना शुल्क ($100,000, यानी करीब 88 लाख रुपये) करने के बाद भी अब यह स्वीकार किया है कि H-1B वीज़ा आवश्यक हैं क्योंकि अमेरिका में प्रतिभाशाली स्थानीय वर्कर्स की कमी है।
रुख में बदलाव का कारण
राष्ट्रपति ट्रंप का मानना है कि ये विदेशी पेशेवर अमेरिका की तकनीकी और व्यावसायिक ज़रूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं। उन्होंने ज़ोर दिया कि H-1B वीज़ा प्रणाली अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
ट्रंप ने इंटरव्यू में कहा कि अमेरिका में काफी प्रतिभाशाली लोग नहीं हैं, और कुछ कौशल ऐसे होते हैं जो स्थानीय लोगों के पास नहीं होते। उन्होंने तर्क दिया कि अमेरिका लंबे समय से बेरोजगार अमेरिकियों को व्यापक ट्रेनिंग के बिना मैन्यूफैक्चरिंग और डिफेंस में जटिल भूमिकाओं के लिए नहीं रख सकता।
उन्होंने जॉर्जिया राज्य का उदाहरण दिया, जहां कुशल कोरियाई कर्मचारियों को हटाने से जटिल उत्पाद, जैसे कि बैटरियां (जो बनाना बहुत जटिल और खतरनाक काम है), बनाने में काफ़ी समस्या आई। ट्रंप ने इस बात पर सहमति जताई कि अमेरिका को ऐसी प्रतिभा लानी होगी।
🇮🇳 भारतीयों पर असर और फ़ीस में संभावित राहत
ट्रंप के इस नरम रुख से उम्मीद जताई जा रही है कि वीज़ा पर दोगुनी की गई फ़ीस ($100,000, जो पहले लगभग $1,500 थी) पहले जैसी या कम हो सकती है।
इस संभावित बदलाव का सबसे ज़्यादा असर और फ़ायदा भारतीयों को होगा। आंकड़ों के मुताबिक, हर साल नए H-1B वीज़ा में 70% वीज़ा भारतीयों को मिलते हैं। इसके बाद, 11-12% वीज़ा चीनी नागरिकों को मिलते हैं।
यह संकेत देता है कि ट्रंप प्रशासन अब कुशल विदेशी श्रमिकों को अमेरिका की तकनीकी और आर्थिक प्रगति के लिए अनिवार्य मानने लगा है। यह बदलाव, ख़ास तौर पर अमेरिकी कंपनियों में कार्यरत या काम करने की इच्छा रखने वाले भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए बड़ी राहत लेकर आ सकता है।
पूर्व में लिए गए कड़े फ़ैसले
यहां ध्यान देना ज़रूरी है कि पिछले सितंबर में ही ट्रंप ने H-1B वीज़ा में बड़े पैमाने पर बदलाव किए थे, जिसके तहत नए H-1B वीज़ा आवेदनों के लिए $100,000 की फीस तय हुई थी। इस फ़ैसले से हज़ारों भारतीयों की नौकरी पर असर पड़ने की आशंका थी, क्योंकि अधिकांश कंपनियां इतनी ऊंची लागत वहन करने में हिचकिचातीं। हालांकि, राष्ट्रपति का मौजूदा बयान इस सख्त रुख में बदलाव का संकेत दे रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि अमेरिका की व्यावसायिक ज़रूरतें और कुशल श्रम की कमी ने अंततः प्रशासन को अपनी वीज़ा नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है।