ताजा खबर

भारत में मोटापे का संकट: 2050 तक 45 करोड़ लोग होंगे मोटापे के शिकार — उपनिवेशवाद की छाया और बदलती जीवनशैली

Photo Source :

Posted On:Wednesday, August 20, 2025

मुंबई, 20 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन) भारत, जो कभी भुखमरी और अकाल का सामना करता था, अब एक बिल्कुल अलग स्वास्थ्य संकट की गिरफ्त में है। एक हालिया अध्ययन के अनुसार, अगले 25 वर्षों में लगभग 45 करोड़ भारतीय — जिनमें 21 करोड़ पुरुष और 23 करोड़ महिलाएं शामिल हैं — मोटापे या अधिक वजन की समस्या से जूझ रहे होंगे। यह देश की अनुमानित जनसंख्या का लगभग एक तिहाई होगा, और सबसे चिंताजनक बात यह है कि 15-24 वर्ष की उम्र के युवाओं में सबसे तेज़ वृद्धि देखी जा रही है, जिसमें भारत अब अमेरिका और चीन से भी आगे निकल गया है।

बीएमआई का भ्रम और एशियाई शरीर

वैश्विक स्तर पर मोटापे को मापने के लिए इस्तेमाल होने वाला बॉडी मास इंडेक्स (BMI) भारतीयों के लिए हमेशा उपयुक्त नहीं रहा है। मेडिकली, भारतीयों का शरीर संरचनागत रूप से यूरोपीय लोगों से अलग है — खासतौर से पेट के आसपास चर्बी जमा होने की प्रवृत्ति अधिक है, जो कई बार सामान्य BMI होने पर भी हार्ट डिजीज और डायबिटीज़ का खतरा बढ़ा देती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इस अंतर को मान्यता दी है और एशियाई आबादी के लिए BMI की सीमा घटाई है; भारतीयों के लिए 23 BMI पर ही जोखिम का संकेत माना जाने लगा है।

ऐतिहासिक जड़ें: उपनिवेशवाद और अकाल

भारत में मोटापे की जड़ें केवल आधुनिक खानपान या कम शारीरिक गतिविधि में नहीं, बल्कि हमारे इतिहास में छिपी हैं। 18वीं से 20वीं सदी के बीच ब्रिटिश शासनों के दौरान कई भयावह अकाल पड़े, जिनमें 1770 का बंगाल अकाल और 1943 का भयंकर अकाल शामिल हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि लगातार अकाल और कुपोषण ने भारतीय जेनेटिक्स पर गहरा असर डाला — 'थ्रिफ्टी फेनोटाइप' हाइपोथेसिस के मुताबिक पीढ़ियों तक भूखे रहने की वजह से हमारा शरीर वसा को तेजी से स्टोर करने और कम कैलोरी खर्च करने के लिए अनुकूल हुआ। आज की शहरी, कैलोरी-युक्त जीवनशैली में यही जैविक अनुकूलन हमें मोटापे और उससे जुड़ी बीमारियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना रहा है।

पेट का मोटापा — स्वास्थ्य का बड़ा खतरा

भारतीयों में पेट का मोटापा (‘पॉट बेली’) सबसे आम और खतरनाक है। यह चर्बी आंतों और अंगों के आसपास जमा होकर इंसुलिन, शुगर रेगुलेशन और हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ाती है। पुरुषों में यह फैट मुख्यतः पेट में जमा होती है जबकि महिलाओं में यह हिप और थाई पर अधिक होती है, जिससे पीसीओएस, फर्टिलिटी और मेटाबॉलिक सिंड्रोम की दिक्कतें सामने आती हैं।

समाधान क्या है?

तेजी से वज़न कम करना भारतीय शरीर के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि हमारा जैविक सिस्टम इसे अकाल का संकेत मानकर फिर से फैट जमा करना शुरू कर देता है। विशेषज्ञों का मानना है कि टिकाऊ, दीर्घकालिक और जैविक जरूरतों के मुताबिक वज़न कम करना ही सुरक्षित है। जिन लोगों में मोटापा बेहद गंभीर है या मेटाबॉलिक बीमारियां अनियंत्रित हैं, उनके लिए बैरियाट्रिक सर्जरी कारगर हो सकती है, जिससे लंबे समय तक वजन नियंत्रित रखने और डायबिटीज़ व हार्ट रोग का रिस्क घटाने में मदद मिलती है।

निष्कर्ष

भारत में मोटापे का संकट केवल ज्यादा खाना या कम एक्सरसाइज का नतीजा नहीं है, बल्कि यह हमारे इतिहास, जैविक अनुकूलन और बदलती जीवनशैली से गहराई से जुड़ा हुआ है। ज़रूरत है सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों में भारतीयों की विशिष्ट जैविक जरूरतों का ध्यान रखने की, सही डायग्नोस्टिक टूल्स के इस्तेमाल की और ऐसी फिटनेस योजनाओं की, जो सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक हों। इससे भी ज़रूरी है — ऐसी सोच और दृष्टिकोण, जो दोषारोपण नहीं बल्कि समझ और सहानुभूति पर आधारित हो।


अलीगढ़, देश और दुनियाँ की ताजा ख़बरे हमारे Facebook पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें,
और Telegram चैनल पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



You may also like !

मेरा गाँव मेरा देश

अगर आप एक जागृत नागरिक है और अपने आसपास की घटनाओं या अपने क्षेत्र की समस्याओं को हमारे साथ साझा कर अपने गाँव, शहर और देश को और बेहतर बनाना चाहते हैं तो जुड़िए हमसे अपनी रिपोर्ट के जरिए. aligarhvocalsteam@gmail.com

Follow us on

Copyright © 2021  |  All Rights Reserved.

Powered By Newsify Network Pvt. Ltd.