बांग्लादेश की राजनीति एक बार फिर तेज उथल-पुथल के दौर में प्रवेश कर चुकी है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान को 17 साल बाद देश लौटने के कुछ ही घंटों के भीतर जान से मारने की धमकी मिली है। यह धमकी पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश से जुड़े वकील शहरयार कबीर की ओर से दी गई है। इस धमकी में न केवल तारिक रहमान को निशाना बनाया गया, बल्कि भारत का भी जिक्र करते हुए सीधे तौर पर उकसावे वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया।
शहरयार कबीर ने आरोप लगाया कि तारिक रहमान बांग्लादेश लौटकर “अपने पिता को धोखा दे रहे हैं” और “भारत की शर्तों को मान रहे हैं।” उनके इस बयान को बांग्लादेश की राजनीति में भारत विरोधी एजेंडे के तौर पर देखा जा रहा है। यह धमकी ऐसे समय सामने आई है, जब तारिक रहमान की ढाका वापसी को लाखों समर्थकों ने ऐतिहासिक बताया और बीएनपी ने इसे लोकतंत्र की वापसी का संकेत करार दिया।
तारिक रहमान का बांग्लादेश को लेकर विजन
देश लौटने के बाद अपने पहले सार्वजनिक भाषण में तारिक रहमान ने बांग्लादेश के लिए एक समावेशी और सुरक्षित भविष्य का खाका पेश किया। उन्होंने कहा, “जैसे इस देश में पहाड़ों के लोग रहते हैं, वैसे ही मैदानों के लोग भी रहते हैं। इस देश में मुसलमान, बौद्ध, ईसाई, हिंदू और अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं। हम सब मिलकर एक ऐसा बांग्लादेश बनाना चाहते हैं, जिसका सपना हमने देखा है।”
तारिक रहमान ने स्पष्ट किया कि उनका लक्ष्य ऐसा बांग्लादेश बनाना है, जहां सभी नागरिकों को सुरक्षा, सम्मान और समान अवसर मिले। उन्होंने कट्टरपंथ और हिंसा से दूर एक लोकतांत्रिक व्यवस्था की बात की, जो सीधे तौर पर जमात-ए-इस्लामी की राजनीति से टकराती नजर आती है।
NCP में बगावत और जमात की रणनीति
बांग्लादेश की राजनीति में इस समय नेशनल सिटिजन्स पार्टी (NCP) के भीतर भी मतभेद उभरकर सामने आ रहे हैं। पार्टी के कुछ नेता जमात-ए-इस्लामी के साथ गठबंधन के पक्ष में हैं, जबकि कई नेता इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं। सीट-शेयरिंग को लेकर चल रही बातचीत के बीच NCP के वरिष्ठ नेता मीर अरशदुल हक ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है, जिससे आंतरिक बगावत साफ झलकती है।
अंतरिम सरकार द्वारा अवामी लीग पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद 12 फरवरी को होने वाला चुनाव अब मुख्य रूप से दो ध्रुवों के बीच सिमटता दिख रहा है। एक ओर BNP है, जो जल्द चुनाव कराने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर जोर दे रही है, वहीं दूसरी ओर जमात-ए-इस्लामी और उसके समर्थक चुनाव टालने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। जैसे-जैसे जमात और NCP के बीच गठबंधन मजबूत हो रहा है, तारिक रहमान पर हमले तेज होते जा रहे हैं।
भारत के साथ संबंधों पर संभावित असर
तारिक रहमान की वापसी के बाद भारत-बांग्लादेश संबंधों को लेकर भी नई चर्चाएं शुरू हो गई हैं। भारत के सामने अब एक ऐसे नेता से संवाद की चुनौती होगी, जो बांग्लादेश को प्राथमिकता देता है और खुले तौर पर यह कहता है कि वह किसी भी देश की शर्तों पर नहीं चलेगा। हालांकि, जानकारों का मानना है कि तारिक रहमान भारत-बांग्लादेश के ऐतिहासिक संबंधों को उतनी अहमियत नहीं देते, जितनी अवामी लीग देती रही है।
दूसरी ओर, जमात-ए-इस्लामी की राजनीति पूरी तरह भारत-विरोध पर आधारित मानी जाती है। आलोचकों का कहना है कि जमात को न तो बांग्लादेश की सुरक्षा, न शिक्षा, न गरीबी उन्मूलन और न ही सामाजिक कल्याण से कोई सरोकार है। इसके उलट, तारिक रहमान अपने विजन में विकास, समावेशिता और लोकतंत्र की बात करते नजर आते हैं।
इस्लामी सिद्धांतों में आस्था रखने के बावजूद तारिक रहमान बांग्लादेश को एक ऐसे देश के रूप में देखना चाहते हैं, जहां सभी धर्मों के लोगों को समान सुरक्षा और सम्मान मिले। ऐसे में उन्हें मिली धमकी सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि बांग्लादेश की भविष्य की राजनीति को लेकर चल रही वैचारिक लड़ाई का संकेत मानी जा रही है।