सूखे डैम, पानी को तरसती राजधानी और आसमान की ओर टकटकी लगाए लोग—ईरान इस वक्त एक ऐसे भयावह जल संकट का सामना कर रहा है जिसकी तीव्रता अभूतपूर्व है। पानी की कमी इस हद तक पहुँच चुकी है कि देश के राष्ट्रपति को भी सामने आकर चेतावनी देनी पड़ी है कि यदि जल्द ही पर्याप्त बारिश नहीं हुई तो राजधानी तेहरान से आबादी हटाने जैसा कड़ा फैसला भी लेना पड़ सकता है।
यह संकट सिर्फ तेहरान तक सीमित नहीं है। देश के 20 से अधिक प्रांत महीनों से पानी की एक बूँद को तरस रहे हैं। खेत सूख गए हैं, सदियों पुराने तालाब और जलाशय गायब हो गए हैं, और कई शहरों में लोग बाल्टी लेकर घंटों इंतजार करते हैं कि शायद कहीं से पानी की आपूर्ति हो जाए। विशेषज्ञ साफ तौर पर कह रहे हैं कि यह संकट एक-दो साल का नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के जीवन पर गहरा असर छोड़ जाएगा।
राजधानी तेहरान की सबसे दयनीय हालत
सीएनएन (CNN) की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 1.5 करोड़ की आबादी वाली देश की राजधानी तेहरान सबसे भीषण संकट झेल रही है।
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जलाशयों की स्थिति: शहर के मुख्य जलाशय (डैम) केवल 11% तक भरे हुए हैं।
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खतरनाक स्तर: शहर के पास स्थित एक बड़ा डैम अपनी क्षमता के मात्र 9% पर आ चुका है, जबकि एक अन्य महत्वपूर्ण डैम केवल 8% पर है। ये स्तर पानी की आपूर्ति के लिए बेहद खतरनाक माने जाते हैं।
कई इलाकों में पानी के नल घंटों सूखे रहते हैं। हालाँकि सरकार ने आधिकारिक रूप से पानी की राशनिंग (नियंत्रित वितरण) की घोषणा नहीं की है, लेकिन लोग लगातार कम दबाव और पानी की अत्यधिक अनियमित आपूर्ति की शिकायत कर रहे हैं।
छह साल से जारी सूखा, नीतियाँ हैं ज़िम्मेदार
ईरान पिछले छह वर्षों से लगातार सूखे की मार झेल रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह न केवल सबसे लंबा सूखा है, बल्कि अपनी तीव्रता में भी अभूतपूर्व है। कम बारिश, प्राकृतिक जलस्रोतों की कमी और लगातार बढ़ते तापमान ने हालात को और बिगाड़ दिया है। जलवायु परिवर्तन ने इस संकट को गंभीर रूप से बढ़ाया है।
जानकारों की मानें तो पानी की यह समस्या अचानक नहीं आई है। इसकी जड़ में दशकों की गलत नीतियाँ जिम्मेदार हैं:
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अत्यधिक बांध निर्माण: नदियों पर आवश्यकता से अधिक बांधों का निर्माण।
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भूजल का अंधाधुंध दोहन: पानी के लिए भूमिगत जल का बेतहाशा इस्तेमाल।
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पुराने पाइपलाइन: पानी आपूर्ति करने वाली रिसती हुई और पुरानी पाइपलाइनें।
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पानी-खपत वाले उद्योग: ऐसे उद्योगों का विस्तार जो अत्यधिक पानी का उपयोग करते हैं।
सबसे बड़ी वजह रही है पानी पर टिकी कृषि नीतियाँ। देश में लगभग 90% पानी खेती में इस्तेमाल होता है। चावल जैसी पानी-खर्चीली फसलें बड़े पैमाने पर उगाई जाती हैं, जिससे भूजल लगातार नीचे जा रहा है।
वॉटर बैंकक्रप्सी की ओर देश
कभी दुनिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झीलों में शुमार एक प्रमुख झील अब लगभग पूरी तरह सूख चुकी है। विशेषज्ञ इसे वॉटर बैंकक्रप्सी (जल दिवालियापन) बताते हैं, जिसका अर्थ है कि देश ने अपनी जल-संपत्ति ऐसे खत्म कर दी है कि उसे फिर से भरना असंभव हो गया है। सरकार ने संकट से निपटने के लिए बादलों में कृत्रिम बारिश कराने की कोशिशें भी की हैं, लेकिन वैज्ञानिक इसकी सफलता को लेकर संशय में हैं। हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि लोग बड़े पैमाने पर मस्जिदों और धार्मिक स्थलों पर जाकर बारिश की दुआ कर रहे हैं।