पाकिस्तान में हर साल 14 अगस्त को पूरे उत्साह के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है, लेकिन इस साल का जश्न एक दिल दहला देने वाले हादसे में तब्दील हो गया। कराची शहर में हर्ष फायरिंग (हवाई फायरिंग) की घटनाओं ने जश्न को मातम में बदल दिया। इस फायरिंग में तीन लोगों की मौत हो गई, जिनमें एक बुजुर्ग, एक बच्ची और एक अन्य युवक शामिल हैं। साथ ही करीब 60 लोग घायल हुए हैं।
जश्न में तब्दील हुआ मातम
कराची की गलियों में 14 अगस्त की रात को लोग आजादी का जश्न मना रहे थे। सड़कों पर रैलियां निकाली जा रही थीं, झंडे लहराए जा रहे थे और आतिशबाजी की जा रही थी। इसी बीच कुछ अराजक तत्वों ने हवाई फायरिंग शुरू कर दी। ये फायरिंग इतनी व्यापक थी कि कई इलाकों में दहशत फैल गई।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जीजाबाद इलाके में रहने वाली एक मासूम बच्ची, और कोरंगी के निवासी स्टीफन नामक व्यक्ति की मौत हो गई। तीसरे मृतक की अभी पहचान नहीं हो पाई है। इसके अलावा, फायरिंग की वजह से दर्जनों लोग घायल हुए हैं, जिन्हें तुरंत शहर के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया।
पुलिस की सख्त कार्रवाई, 20 गिरफ्तार
इस घटना के बाद पाकिस्तानी पुलिस तुरंत हरकत में आई और कई इलाकों में सर्च ऑपरेशन चलाया गया। शुरुआती कार्रवाई में 20 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इन लोगों के पास से अवैध हथियार भी बरामद किए गए हैं। पुलिस का कहना है कि यह मामला सिर्फ लापरवाही का नहीं, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा में गंभीर चूक का उदाहरण है।
हर साल दोहराई जाती है यह गलती
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हर्ष फायरिंग से जानें गई हों। पिछले साल भी इसी दिन फायरिंग की घटनाओं में एक बच्चे की मौत हुई थी और 90 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। हर साल कराची, लाहौर और इस्लामाबाद जैसे बड़े शहरों में हवाई फायरिंग आम बात बन गई है, जिसे रोकने के लिए अभी तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है।
प्रशासन की नाकामी पर उठे सवाल
इस घटना ने एक बार फिर पाकिस्तान के कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिर क्यों हर साल इस तरह की घटनाएं दोहराई जाती हैं? क्यों आजादी के जश्न के नाम पर लोगों की जान से खिलवाड़ किया जाता है? और क्यों अभी तक कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई है जिससे हर्ष फायरिंग पर रोक लगाई जा सके?
निष्कर्ष: कब बदलेगा जश्न मनाने का तरीका?
आजादी का जश्न एक उत्सव होता है, खुशियों और गर्व का अवसर होता है, लेकिन जब वही जश्न मासूमों की मौत और दर्जनों जख्मी लोगों का कारण बन जाए, तो यह समाज और प्रशासन दोनों की असफलता को दर्शाता है। पाकिस्तान को अब गंभीरता से इस विषय पर विचार करना होगा कि शांति से जश्न कैसे मनाया जाए, ताकि 14 अगस्त का दिन सिर्फ आजादी का प्रतीक रहे, शोक का नहीं।